vendredi 26 janvier 2018

أحتاجك   حبيبي
في  هذا   المساء
متعطش  للقياك
فلماذا  هذا  الجفاء ...؟
احتاجك  حبيبي
و  لعيون  الرمى
لبسمة   الخجل ...
لما  أبتسم  أنا
لحضنك    هاف ...
و لصدرك    الدافء
لرائحة   فاجلك
و  لون    شعرك 
ورد   خدك 
و فسح  عنقك
لقبلاتك...
و  شفاه  اللماء...
لسندة   زندك 
و  لمس  يدك
اني  مشتاق...مشتاق
لكل  هذا ...
و  أكثر ... منك ...
متى  تأتي حبيبتي ...؟
إن  غيابك  أعياني 
و  هجرك   مزقني
كم  اشتاق  لرأياك
و   الجلوس   إليك
أن   القلب   هاءم
على   سطح   البدر  
في   ليالي   الشتاء
و  النجوم  تنعى
و العيون  بالدمى
احتاجك  حبيبتي
هل  انت  هنا ..؟
اين  انت ..؟
و  أين  أنا..؟
قلم علي  الحاجي

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